पीहर छोड़ मेरी बन्नो
अपने ससुराल चली
अपना आंगन छोड़ चिड़िया
किसी और घर संसार चली
जहां कल तक शहनाई थी
उसे सुने पन का एहसास दे गई
मां पापा को ही नहीं
मेघों को भी आंसू की बरसात दे गई
जिस घर लड़ियां जगमगाती थी
अजीब अंधेरे की रात दे गई
कोने में गूंजती थी हंसी ठिठोली
गहरी चुप्पी की कोई बात दे गई
मेहंदी की महक हल्दी का रंग
अपने साथ ले गई
मां का प्यार और दुआ
पिता का आशीर्वाद ले गई
काश कह पाती तुझे की लौट आ मेरी बन्नो
पर पैरों में रिश्तो की बेड़ियां बांध ले गई
पिता तो अब भी तेरा नाम पुकारता है
पर तेरे दौड़ के चले आने की
उम्मीद नहीं बस याद बाकी है
तू तो छोड़ चली हमें
तन्हाइयों का साथ बाकी है
मुस्कुराहटें तो तू ले गई साथ अपने
अब तो बस आंसू की बरसात बाकी है
@nu$h@
poems are really heart touching....
ReplyDeleteI really like your work.
Talented Smarty.